''हिन्दू कहे तो मारिए, मुसलमान भी नाय, पंचभूत का फोफड़ा,
नानक तेरा नाम।''
जाने-माने चित्रकार सैयद हैदर रजा और तरुण विजय के बीच विशेष बातचीत
सैयद हैदर रजा जाने-माने विश्व प्रसिद्ध चित्रकार और दार्शनिक हैं। मध्य प्रदेश में मंडला जिले के बरबरिया गांव में जन्मे श्री सैयद ने "बिन्दु" को अपनी कलाकृतियों का मुख्य केन्द्र बनाया। पेरिस में जा बसे, पर हिन्दुस्थान उनके तन, मन और कला संसार पर छाया रहा। उनकी कलाकृतियां यूरोप, अमरीका और अन्य देशों में करोड़ों रुपए में बिकी हैं। हाल ही में उनकी एक कलाकृति एम्स्टर्डम में 15 लाख डालर यानी 32 करोड़ रु. में खरीदी गई। लेकिन उनका मन तभी सन्तुष्ट होता है जब वे भारत, भारतीयता और यहां की माटी के दर्शन के सन्दर्भ में अपने मन की बात कहते हैं। पिछले दिनों वे भारत आए तो उनका आना देश के विभिन्न क्षेत्रों में एक उत्सवी आनन्द बरसा गया। उन्होंने कलाकृतियों से प्राप्त धनराशि का एक कोष बनाया है जिससे वह भारतीय उदीयमान कलाकारों की मदद करते हैं। हमने उनसे नई दिल्ली में इंडिया इन्टरनेशनल सेन्टर में लंबी बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उस बातचीत के कुछ चुने हुए हिस्से।
आप मंडला में जन्मे, एक ब्राह्मण गुरु से संस्कार पाये और पेरिस में जा बसे। इस कथा की व्याख्या करें।
मुझे फ्रांस जाने का मौका मिला। पेरिस में कला सीखने की कोशिश की। उन दिनों दुनिया में पेरिस कला का माना हुआ केन्द्र था। 30 साल तो मुझे सिर्फ यह समझने में लग गए कि रंगों और रेखाओं का क्या महत्व है। कलाकृति कैसे बनाई जाती है। उसके बाद जब मुझे यूरोप की विभिन्न कला दीर्घाओं में सफलताएं मिलीं तो उन सफलताओं के दौर में मैं रात को बैठता और सोचता कि दुनिया में मुझे इतनी प्रशंसा मिल रही है। लेकिन रजा, हिन्दुस्थान के बारे में तुम क्या सोचते हो? तुम्हें पेरिस और बाकी यूरोप में इतनी सफलताएं मिली हैं। लेकिन इन सब में तुम्हारा अपना देश, अपनी माटी, अपना गांव कहां है तो मैंने तय किया कि मैं अपनी तमाम कलाकृतियों में भारतीय विषय प्रमुखता से चित्रित करूंगा। 1975 से 1985 तक मैंने भारतीय संस्कृति, माटी और यहां के विभिन्न प्रतीकों, आस्था केन्द्रों और विश्वास के बिन्दुओं पर भी काम किया। मैंने "बिन्दु" को पंचतत्व के प्रतीक के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया। यह बिन्दु एक नई व्याख्या है। मैं अत्यन्त विनम्रतापूर्वक कहना चाहूंगा कि मैंने यह पहली बार प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। कोई भी अन्य कलाकार बिन्दु के सन्दर्भ में यह नहीं कर पाया है। शिव, देवी और उनसे जुड़े विभिन्न प्रतीकों को अत्यन्त पवित्रता और श्रद्धा के साथ मैंने चित्रित किया। मैंने यूरोप के लोगों को समझाया कि भारत में शिवलिंग अत्यन्त पवित्रता का प्रतीक है और उसकी पूजा की जाती है। देवी शक्ति की प्रतीक है। मानो तो शंकर न मानो तो कंकर। यह सब श्रद्धा का विषय है।
आपने पंचतत्व को अपनी कलाकृतियों के माध्यम से किस प्रकार अभिव्यक्त किया?
हिन्दू जीवन दर्शन के अनुसार न केवल यह संसार, बल्कि मानवीय अस्तित्व और ब्राह्माण्ड भी पांच तत्वों से मिलकर बना है। क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा- यह हम बचपन से पढ़ते आए हैं। चित्रकार के नाते मैंने यह महसूस किया कि कोई भी कलाकृति रंगों के बिना नहीं बनाई जा सकती और मूलत: रंग भी पांच होते हैं- काला, सफेद, लाल, पीला और नीला। ये सम्पूर्ण विश्व की कलाकृतियों के आधार हैं। विश्व का प्रत्येक कलाकार यह जानता है कि इन पांच रंगों से ही सैकड़ों, हजारों रंग बनते हैं। लेकिन चूंकि मैं हिन्दुस्थानी था इसलिए मैंने इन पांच रंगों को हिन्दू जीवन दर्शन में व्यक्त पंचतत्वों से जोड़ा। यह विश्व का पहला प्रयोग था। नानक ने भी कहा है- "हिन्दू कहे तो मारिए, मुसलमान भी नाय, पंचभूत का फोफड़ा, नानक तेरा नाम।" मैं जब कभी बात करता हूं तो भारत की बात करता हूं। मैं हिन्दू और मुसलमान से ऊपर उठकर बात करता हूं। पंचभूत की बात करता हूं। वही पंचभूत मैंने अपनी कलाकृतियों में जीवन्त करने का प्रयास किया है।
आपसे बात करते हुए ऐसा लगता है मानो हम किसी ऋषि से बात कर रहे हों। लेकिन आप तो रजा साहब हैं। सैयद हैदर रजा। आप स्वयं को हिन्दू विचार और दर्शन से कैसे जोड़ते हैं?
देखिए, मेरा जन्म भले ही मुस्लिम परिवार में हुआ हो, लेकिन मेरे सभी शिक्षक बहुत उच्च कोटि के ब्राह्मण थे। उनसे जो मुझे शिक्षा और दीक्षा मिली है उस पर मुझे गर्व है। मैं उनका आभारी हूं कि उन्होंने मुझे ऐसी शिक्षा दी। उसी का यह परिणाम है कि मुझे लगता है कि ईश्वर के किसी भी उपासना स्थल में जाना एक समान है- मंदिर में जाओ, मस्जिद में जाओ, चर्च या गुरुद्वारे में जाओ- एक समान है। मैं ईश्वर के हर उपासना स्थल में खुशी से जाता हूं। अभी मैं मध्य प्रदेश गया था। हमारे घर के सामने ही एक प्राचीन गणेश मन्दिर है। वहां जैसे मैं बचपन में गणेश की पूजा करता था, वैसे ही अब जाकर मैंने गणेश की पूजा की। महात्मा गांधी ने कहा था- ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान।
यह तो पूरी तरह भारतीय विचार है। हिन्दू जीवन दर्शन-सर्व देव नमस्कारं केशवं प्रति गच्छति में अभिव्यक्त होता है।
हां, यह पूरी तरह से भारतीय विचार है। सत्य एक है। उसे विभिन्न विद्वान विभिन्न प्रकार से कहते हैं। मैं अपनी इस आस्था का व्यावसायिक प्रचार नहीं करना चाहता, क्योंकि आज का माहौल ऐसा बन गया है कि आप जो कहना चाहें उसे सही रूप में न लिया जाएगा। लेकिन मुझे इस बात का गर्व है कि मैं भारतीय हूं और भारतीय जीवन दर्शन ने, हिन्दू जीवन दर्शन ने मुझे सोचने की एक दिशा दी है।
साभार: पांचजन्य
साभार: पांचजन्य
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