रज़ा से बातचीत के अंश
विख्यात कलाकार सैयद हैदर रज़ा के ज्यादातर रचनात्मक कार्य का केंद्र रहने वाला 'बिंदु' उन्हें बचपन में स्कूल के दिनों में मध्य प्रदेश के एक स्कूल में मिली एक सजा से संबंधित है। रजा की 'बिंदु' कला अक्सर उनके कैनवास के केंद्र में एक रंगीन बिंदु से शुरू होती है और इस बिंदु से ही चौकोर या गोलाकार आकृतियां निकलती हैं। रजा के जीवन में बिंदु के जन्म की एक रोचक कहानी है।
अपने बचपन को याद करते हुए रजा कहते हैं, "बचपन में मैं एक प्रतिभाशाली छात्र नहीं था। मध्य प्रदेश के एक स्कूल में मेरे शिक्षक नंदलाल झारसा ने दीवार पर एक काला बिंदु बना दिया था और मुझे जमीन पर बैठकर उस बिंदु को देखने के लिए कहा था।
मैं डर गया था। यह स्कूल समाप्त होने के बाद की घटना है और मेरे शिक्षक ने हमेशा की तरह कहा कि वह कपड़े बदल कर आते हैं। वह कुछ समय बाद अपने कपड़े बदल कर लौटे। मैं उनका आभारी हुआ। एक दिन उन्होंने मुझे रात के भोजन के बाद पढ़ने के लिए अपने घर बुलाया और कहा कि मेरे पिता ने उनसे मुझे गणित, हिंदी और भूगोल पढ़ाने के लिए कहा है। बिंदु हमेशा मेरे साथ रहा।"
पेरिस में बिंदु उनकी कला का विशेष विषय बना रहा। रजा ने यहां आईएएनएस से कहा, "मैंने यूरोपीय शैली की कला में 30 वर्ष समर्पित कर दिए लेकिन यूरोप में पहचान मिलने के बावजूद मैं संतुष्ट नहीं था। मैं अपने आप से पूछता था कि मेरी पेंटिंग्स में भारत कहां है। मेरे दिमाग में यह बिंदु आ जाता और यह एक बीज की तरह काम करता जो एक पूरे पेड़ को जन्म देता था।"
रज़ा कहते हैं कि एक कलाकार के रूप में उनका जन्म उस दिन हुआ जिस दिन बिंदु ने उनके जीवन को प्रभावित किया। उन्होंने कहा कि वह दिल्ली में पेंटिंग करना और जीवन के अनुभवों के संबंध में लिखना चाहते हैं।
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