उन दिनों फिल्में नहीं चलती थीं, सिर्फ राजेश खन्ना चलते थे। लड़कियां उनकी फोटो से शादी
करती थीं, उन्हें खून से खत लिखती थीं, हाथों पर उनका नाम गुदवा लेती थीं और अपने तकिए के नीचे उनके फोटो रख कर सोती
थीं। गर्दन टेढ़ी कर आंखें झपकाने का उनका अंदाज़ उस वक्त के युवाओं में क्रेज़ की
तरह था।
राकेश त्रिपाठी
वरिष्ठ पत्रकार
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साल 1969 में आई फिल्म 'आराधना' से लेकर 1975 में आई फिल्म 'प्रेम कहानी' तक उन्हें बॉलीवुड में भगवान जैसा दर्जा मिलता रहा। ये वो वक्त था जब फिल्म
इंडस्ट्री आज के दौर के मुकाबले छोटी जरूर थी लेकिन यहां घमासान कम नहीं था। दिलीप
कुमार, राज कपूर,
देव आनंद, शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार जैसे एक्टर राज करते थे। इन सबकी
मौजूदगी में किसी भी नए एक्टर के लिए अपनी पहचान बनाना बड़ी बात थी। लेकिन राजेश
खन्ना ने न सिर्फ अपनी पहचान बनाई, बल्कि बहुत कम वक्त में अपने स्टारडम को एक नई
ऊंचाई तक पहुंचा दिया।
1969 से 1975 तक जिन लोगों ने उनके सुपर स्टारडम को बेहद
करीब से देखा, वो बेहिचक कहते भी हैं कि जिस ऊंचाई को उन्होंने
छुआ, वहां उनके बाद आज तक हिंदी सिनेमा का कोई स्टार
नहीं पहुंचा। उनकी कामयाबी आज भी एक मिसाल है ।उनकी 73 फिल्मों ने गोल्डेन जुबिली मनाई यानी थियेटरों में 50 हफ्ते से ज़्यादा चलीं। इसके अलावा उनकी 22 फिल्मों ने सिल्वर जुबिली भी की। भले ही बतौर
सुपरस्टार उनका दौर छोटा रहा हो, लेकिन उनकी मकबूलियत का नमूना देखिए कि 1970 से 1987 तक वो जबसे ज़्यादा पैसा पाने वाले हीरो थे। ये
वो दौर था जब अमिताभ बच्चन का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोलने लगा था।
राजेश के फैन्स में छह से
लेकर 60 साल तक के लोग शामिल थे। जब वो तमिलनाडु में भी
शूटिंग कर रहे होते , उन्हें देखने भारी भीड़ जमा हो जाती थी। ये हैरत
की बात थी क्योंकि तमिलनाडु में उस वक्त हिंदी फिल्में आमतौर पर ज्यादा नहीं चलती
थीं। तमिल फिल्म इंडस्ट्री खुद काफी बड़ी थी और उसके अपने मशहूर स्टार थे, लेकिन राजेश खन्ना का करिश्मा ही था, जो भाषा की सरहदों को भी पार कर गया था। ये
करिश्मा उन्होंने उस दौर में कर दिखाया जब न तो टेलीविजन था, न 24 घंटे का एफएम रेडियो और न ही बड़ी-बड़ी पीआर
एजेंसियां। लेकिन चार-पांच साल के बाद ही उनके करियर की ढलान भी शुरू हो गई।
जिस तरह उनकी बेपनाह
कामयाबी की कोई एक वजह नहीं थी, उसी तरह उनके करियर के ढलने की भी कोई एक वजह
नहीं थी। उनकी पारिवारिक जिंदगी के तनाव, इंडस्ट्री के लोगों के साथ उनका बर्ताव और कुछ
नया न करना… ऐसी कई वजहों में से कुछेक थीं। फिर जब फिल्में
पिटीं तो उन्होंने अपने अंदर झांककर नहीं देखा कि गलती कहां हुई। उन्होंने दूसरों
को दोष देना शुरू कर दिया। उन्हें लगता था कि उनके खिलाफ कोई साजिश हुई है। फिर
धीरे-धीरे उनका दौर गुजर गया, लेकिन अपने जेहन में वो इस बात को कभी स्वीकार
नहीं कर पाए, कि वो अब सुपरस्टार नहीं हैं। ढलती उम्र में
अपने फन का जिस करीने से इस्तेमाल बाद में अमिताभ बच्चन ने किया, वो काका नहीं कर पाए। घटिया फिल्मों के सेलेक्शन ने उनसे उनकी जगह छीन ली। हालांकि उनका दौर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का बेहद
अहम और करिश्माई दौर रहा।
अपने उस दौर में वह वन
मैन-इंडस्ट्री थे और कहा जाए तो उन दिनों फिल्में नहीं चलती थीं, सिर्फ राजेश खन्ना चलते थे।