सुनील कुमार, स्वतंत्र पत्रकार
यूं तो कला चिंतकों और प्रेमियों को अक्सर कला प्रदर्शनियों के शीर्षक और दीर्घा में प्रदर्शित कलाकृतियों के बीच संवाद स्थापित करने के संकट से जूझना पड़ता है, लेकिन दिल्ली की ओपन पाम कोर्ट कला दीर्धा में आयोजित समूह कला प्रदर्शनी द सिग्नेचर ऑफ डायवर्सिटी, पार्ट टू सहजता से खुद को पारिभाषित करती दिखी।
बीस कलाकारों की कलाकृतियों को समेटे इस समूह प्रदर्शनी का मूल आधार रहा ‘विविधिता’, जहां यह देखना सुखद रहा कि विविध परिवेश और स्थानों से निकलकर किस तरह युवा कलाकार कला की अपनी-अपनी थाती समेटे नई सोच और संप्रेषण विधियों के साथ आधुनिक कला में नवीन प्रयोग कर रहे हैं, खासतौर पर बिहार, झारखंड और ओडिशा के कलाकार।
यूं तो कला चिंतकों और प्रेमियों को अक्सर कला प्रदर्शनियों के शीर्षक और दीर्घा में प्रदर्शित कलाकृतियों के बीच संवाद स्थापित करने के संकट से जूझना पड़ता है, लेकिन दिल्ली की ओपन पाम कोर्ट कला दीर्धा में आयोजित समूह कला प्रदर्शनी द सिग्नेचर ऑफ डायवर्सिटी, पार्ट टू सहजता से खुद को पारिभाषित करती दिखी।
बीस कलाकारों की कलाकृतियों को समेटे इस समूह प्रदर्शनी का मूल आधार रहा ‘विविधिता’, जहां यह देखना सुखद रहा कि विविध परिवेश और स्थानों से निकलकर किस तरह युवा कलाकार कला की अपनी-अपनी थाती समेटे नई सोच और संप्रेषण विधियों के साथ आधुनिक कला में नवीन प्रयोग कर रहे हैं, खासतौर पर बिहार, झारखंड और ओडिशा के कलाकार।
एक तरफ जहां राजेश राम, उदय पंडित, अरविंद सिंह या राजेश सिंह देवरिया जैसे युवा मूर्तिकारों की कलाकृतियों ने दीर्घा में सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित किया, वहीं दूसरी तरफ सीरज सक्सेना, अभिजीत पाठक, सूरज कुमार काशी, रंजीत कुमार, अजय शर्मा, संगीता मिश्रा और संजू दास की कलाकृतियों को प्रतुल दाश और प्रदोष स्वैन की कलाकृतियों के सामने देखना निश्चित तौर एक अलग अनुभूति को सामने लाता है। कढ़ाई जैसे परंपरागत कला माध्यमों में अमूर्त कला के जोखिम को युवा कलाकार कितनी आसानी से उठा ले जाते है, इसे भारती दीक्षित और सीरज की कलाकृतियों में देखा जा सकता है।
मार्सी आर्ट एंड कल्चर प्राइवेट लिमिटेड ने ‘द सिग्नेचर ऑफ डायवर्सिटी’ का खूबसूरत क्यूरेशन किया था। कलाकृतियों और कलाप्रेमियों के बीच संवाद-स्थापना के लिए पर्याप्त स्पेस समूह प्रदर्शनियों में कम ही देखने को मिलता है। स्पेस का महत्व तब ज्यादा बढ़ जाता है जब कलाकृतियों में उत्तर आधुनिक कला की प्रवृतियों से लेकर परंपरागत लोक कला के तत्वों के देख और समझ रहे हों और समकालीन कला में उन तत्वों की सुंदर गतिशीलता से साक्षात्कार कर रहे हों।
साक्षात्कार की इस स्थिति का होना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि जन-जन में बसी लोक कला की तरल प्रवृतियों को अंगीकार कर आधुनिक कला में अपने लिए ठोस जमीन तैयार करने की जद्दोजहद युवा कलाकारों में ज्यादा दिखती है। इसकी एक वजह यह भी है कि उन्हीं प्रवृतियों को अपनाकर देश के कई ख्यातिलब्ध मूर्धन्य कलाकारों ने आधुनिक कला के नये प्रतिमान गढे हैं। यह बात अमूर्त कला पर भी लागू होती है और मूर्त कला पर भी।
जाहिर है, समकालीन कला की इन प्रवृतियों पर गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता है और मार्सी आर्ट एंड कल्चर ग्रुप मूर्धन्य कलाकारों और कला चिंतकों के साथ कलाकारों की युवा पीढ़ी और कला प्रेमियों के बीच विचार-विमर्श पर भी जोर दे रहा है ताकि समकालीन कला की प्रचलित शब्दावलियों के साथ-साथ कला में बदलावों और चल रहे प्रयोगों से उनका परिचय संभव हो सके।
No comments:
Post a Comment